Supreme Court News – अगर आप सरकारी नौकरी में हैं या रिटायर्ड कर्मचारी हैं तो ये खबर आपके लिए बहुत जरूरी है। क्योंकि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है, जो लाखों कर्मचारियों के लिए राहत की सांस लेकर आया है। खासतौर पर उनके लिए जिनकी सैलरी से सालों बाद पैसे वसूले जा रहे थे या जिनकी सैलरी में अचानक कटौती कर दी जाती है।
चलिए आपको आसान भाषा में बताते हैं कि मामला क्या था, सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा और अब आगे इसका असर क्या पड़ेगा।
मामला शुरू होता है बिहार से
ये केस बिहार सरकार के एक रिटायर्ड कर्मचारी से जुड़ा है। इस कर्मचारी ने करीब 35 साल तक सेवा दी और फिर साल 2001 में रिटायर हो गया। सब कुछ सामान्य चल रहा था लेकिन 8 साल बाद यानी 2009 में इस कर्मचारी को एक झटका लगा। सरकार की तरफ से एक नोटिस भेजा गया, जिसमें कहा गया कि सैलरी तय करते वक्त गलती हो गई थी और उसे तय से ज्यादा पैसा मिल गया। अब सरकार वो रकम वापस लेना चाहती थी – पूरे 63,765 रुपये।
अब सोचिए, कोई इंसान जिसने रिटायरमेंट की जिंदगी शुरू कर दी हो, वो अचानक एक दिन देखे कि सरकार पैसे वापस मांग रही है। कितनी बड़ी मानसिक परेशानी हो सकती है।
हाईकोर्ट का फैसला और सुप्रीम कोर्ट की एंट्री
इस रिटायर्ड कर्मचारी ने पटना हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन वहां से राहत नहीं मिली। हाईकोर्ट ने सरकार के इस फैसले को सही ठहरा दिया। लेकिन कर्मचारी हार नहीं माने और सुप्रीम कोर्ट चले गए।
सुप्रीम कोर्ट ने जैसे ही इस मामले को सुना, उन्होंने सरकार की खिंचाई कर दी। कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि अगर एक बार किसी कर्मचारी की सैलरी तय हो गई है, तो उसे बाद में घटाया नहीं जा सकता। सरकार की गलती का खामियाजा कर्मचारी क्यों भुगते?
सुप्रीम कोर्ट की कड़ी चेतावनी
कोर्ट ने सरकार को साफ कहा कि सैलरी घटाना एक तरह की सजा है और ऐसा करना पूरी तरह गलत है। कोर्ट ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि रिटायरमेंट के 8 साल बाद नोटिस भेजा गया।
सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला सुनाते हुए राज्य सरकार का वो नोटिस रद्द कर दिया जिसमें पैसे की वापसी मांगी गई थी और साफ कहा कि:
- एक बार तय सैलरी में कोई कटौती नहीं की जा सकती।
- कर्मचारी को गलती के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
- सैलरी घटाना अनुचित है और इससे कर्मचारी की गरिमा को ठेस पहुंचती है।
प्रमोशन के बाद पद घटा दिया गया था
इस मामले में एक और हैरान करने वाली बात सामने आई थी। कर्मचारी को साल 1966 में आपूर्ति निरीक्षक के पद पर नियुक्त किया गया था। फिर 15 साल बाद प्रमोशन मिला, लेकिन 1981 में उसे फिर से जूनियर ग्रेड में डाल दिया गया। यानी प्रमोशन के बावजूद पद और वेतन में गिरावट कर दी गई थी।
इसके बाद 1991 में उसे SDO बना दिया गया और 1999 में सरकार ने एक प्रस्ताव लाया जिसमें कुछ पदों की सैलरी घटा दी गई। इसी को आधार बनाकर बाद में सरकार ने वसूली का नोटिस भेजा।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला बना मिसाल
अब इस फैसले को पूरे देश के लाखों सरकारी कर्मचारी मिसाल की तरह देख रहे हैं। क्योंकि यह पहली बार नहीं है जब किसी कर्मचारी की सैलरी तय करने में गलती होती है। कई बार अधिकारियों की लापरवाही से कर्मचारियों को सैलरी अधिक मिल जाती है और फिर सालों बाद सरकार वसूली का फरमान जारी कर देती है।
लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने साफ कह दिया है – “गलती सरकार की है तो सजा भी सरकार को ही भुगतनी होगी, कर्मचारी को नहीं।”
किन-किन लोगों को होगा फायदा?
इस फैसले से खासकर इन वर्गों को राहत मिलेगी:
- वे रिटायर्ड कर्मचारी जिनसे सालों बाद पैसे वापस मांगे जाते हैं।
- जिनकी सैलरी में बिना कारण कटौती कर दी गई है।
- जिनका प्रमोशन होने के बावजूद पद downgraded किया गया है।
- जो कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की सोच रहे हैं लेकिन हिम्मत नहीं कर पा रहे।
अब ये साफ हो गया है कि अगर आपकी सैलरी एक बार फिक्स हो गई है और आपने बिना किसी फर्जीवाड़े के पैसे लिए हैं तो सरकार आपसे वो पैसे वापस नहीं मांग सकती। और अगर ऐसा करती है, तो आप सुप्रीम कोर्ट तक जा सकते हैं – और वहां कानून आपके साथ खड़ा है।
सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला एक ऐतिहासिक कदम है जो सरकारी कर्मचारियों की गरिमा और अधिकारों की रक्षा करता है। इस फैसले से सरकार को भी ये सीख मिलती है कि सैलरी तय करते वक्त पूरी जिम्मेदारी के साथ काम करे, ताकि बाद में किसी को परेशान न किया जाए।
तो अगर आप भी सरकारी कर्मचारी हैं या रिटायरमेंट के बाद किसी तरह की परेशानी का सामना कर रहे हैं, तो ये जान लीजिए – कानून आपके साथ है। और अब सुप्रीम कोर्ट ने भी ये बता दिया है कि सरकार मनमानी नहीं कर सकती।