अब पत्नी बेच सकती है पति की प्रॉपर्टी! हाईकोर्ट के फैसले ने सबको चौंकाया Property Rights 2025

By Prerna Gupta

Published On:

Property Rights 2025 – भारत में प्रॉपर्टी से जुड़े कानून काफी जटिल होते हैं। खासकर जब मामला किसी की मानसिक या शारीरिक अक्षमता से जुड़ा हो तो स्थिति और भी संवेदनशील हो जाती है। हाल ही में मद्रास हाई कोर्ट ने ऐसा ही एक ऐतिहासिक और मानवीय फैसला सुनाया है, जो लाखों परिवारों के लिए उम्मीद की किरण बन सकता है। इस फैसले के तहत एक महिला को उसके कोमा में गए पति की गार्जियन नियुक्त करते हुए उसे पति की संपत्ति बेचने और उसे गिरवी रखने का अधिकार दिया गया है।

इस लेख में हम इस फैसले को आसान भाषा में समझेंगे, साथ ही यह भी जानेंगे कि ऐसी परिस्थिति में पत्नी या परिजन को क्या अधिकार मिल सकते हैं और इस फैसले का आम लोगों पर क्या असर हो सकता है।

क्या है पूरा मामला?

मामला चेन्नई का है, जहां एक महिला के पति पिछले पांच महीने से कोमा में हैं। पति के नाम पर 1 करोड़ से अधिक की अचल संपत्ति है और परिवार के पास इलाज व घर खर्च के लिए पैसे नहीं हैं। महिला ने कोर्ट में याचिका दायर कर अपने पति की गार्जियन बनने और उनकी संपत्ति को बेचने या गिरवी रखने की अनुमति मांगी, ताकि वह इलाज का खर्च उठा सके।

यह भी पढ़े:
सिर्फ ₹5 में मिलेगा नया बिजली कनेक्शन! किसानों के लिए सरकार का बड़ा तोहफा – Electricity Connection

पहले मद्रास हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने इस याचिका को खारिज कर दिया था, लेकिन बाद में यह मामला डबल बेंच के पास गया, जहां से महिला को न्याय मिला।

हाई कोर्ट ने क्या कहा?

हाई कोर्ट के दो जज – जस्टिस जी. आर. स्वामिनाथन और जस्टिस पी. बी. बालाजी ने कहा कि:

  • कोमा में पड़े व्यक्ति की देखभाल आसान नहीं होती और इसके लिए भारी रकम की आवश्यकता होती है।
  • महिला पर पूरे परिवार और पति की देखभाल का जिम्मा है, ऐसे में उसे राहत देना जरूरी है।
  • महिला को अलग से सिविल कोर्ट में जाकर गार्जियनशिप लेने की जरूरत नहीं होनी चाहिए।

कोर्ट का आदेश:

यह भी पढ़े:
अचानक बंद हुआ बैंक! RBI ने रद्द किया इस बैंक का लाइसेंस – Bank License Cancel
  • महिला को पति की अचल संपत्ति बेचने या गिरवी रखने की अनुमति दी गई।
  • लेकिन शर्त ये है कि जो भी पैसा मिले, उसमें से ₹50 लाख की राशि पति के नाम से एफडी (Fixed Deposit) में रखी जाए।
  • इस एफडी का ब्याज महिला निकाल सकती है, लेकिन मूलधन पति के नाम पर रहेगा और तब तक सुरक्षित रहेगा जब तक वह जीवित हैं।

ये फैसला क्यों है खास?

भारत में अक्सर कानूनी प्रक्रिया इतनी लंबी और जटिल होती है कि ज़रूरतमंद लोग मदद न मिलने की वजह से परेशान हो जाते हैं। खासकर जब कोई व्यक्ति कोमा में हो, तो उसके बैंक खाते या प्रॉपर्टी को चलाने का अधिकार अपने आप पत्नी या परिवार को नहीं मिल जाता।

ऐसे में यह फैसला बहुत ही मानवीय और व्यावहारिक है। इसने यह स्पष्ट कर दिया है कि जब पति फैसले लेने की स्थिति में नहीं है और उसकी देखभाल पत्नी कर रही है, तो उसे वैधानिक अधिकार मिलने चाहिए।

क्या यह फैसला सभी पर लागू होगा?

यह फैसला एक विशेष मामले में दिया गया है, लेकिन इससे एक नज़ीर (precedent) स्थापित हो गई है। इसका मतलब यह है कि अब इसी तरह के मामलों में दूसरे लोग भी इसी आधार पर कोर्ट में अपील कर सकते हैं और राहत पा सकते हैं।

यह भी पढ़े:
SBI देगा सभी युवाओ को 19,000 रुपया तक का वेतन, ऐसे करें आवेदन – SBI Youth India Program

कौन कर सकता है ऐसी याचिका दायर?

अगर आपके परिवार में कोई सदस्य:

  • मानसिक रूप से अस्थिर हो,
  • कोमा जैसी गंभीर हालत में हो,
  • निर्णय लेने में अक्षम हो,

तो आप गार्जियनशिप के लिए हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर सकते हैं।

जरूरी दस्तावेज़

  • मेडिकल सर्टिफिकेट (कोमा या बीमारी का प्रमाण)
  • संपत्ति के दस्तावेज़
  • परिवार की आर्थिक स्थिति का विवरण
  • पहचान और निवास प्रमाणपत्र

क्या पत्नी के पास पहले से ऐसे अधिकार होते हैं?

नहीं। भारतीय कानून के अनुसार, शादी के बाद भी पति और पत्नी की संपत्तियों को अलग-अलग माना जाता है। अगर पति कोमा में चला जाता है या मानसिक रूप से अस्थिर हो जाता है, तो पत्नी को अपने आप उसकी संपत्ति को बेचने या उपयोग करने का अधिकार नहीं मिल जाता, जब तक कोर्ट से अनुमति न ली जाए।

यह भी पढ़े:
5 साल की FD पर अब मिलेगा शानदार रिटर्न! सीनियर सिटीजन को मिल रही खास छूट – Bank FD Scheme

इस फैसले से मिलने वाले लाभ

  • अब ऐसी स्थिति में पत्नी को जल्दी न्याय मिल सकेगा।
  • परिवार को मेडिकल और घरेलू खर्चों के लिए पैसे मिल सकते हैं।
  • कोर्ट की निगरानी में संपत्ति का दुरुपयोग नहीं होगा।
  • पति के नाम पर एफडी बनाकर भविष्य की सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी।

भविष्य में क्या हो सकता है?

इस फैसले के बाद उम्मीद की जा रही है कि सरकार इस विषय में कोई स्थायी नियम बना सकती है। ताकि हर बार कोर्ट में अपील करने की जरूरत न पड़े और लोगों को तुरंत राहत मिल सके।

मद्रास हाई कोर्ट का यह फैसला दिखाता है कि कानून केवल किताबों में नहीं, बल्कि मानवीयता के साथ लागू होता है। जब परिवार आर्थिक संकट से गुजर रहा हो और घर का कमाने वाला व्यक्ति गंभीर बीमारी में हो, तो उसे राहत मिलनी ही चाहिए।

यह फैसला लाखों महिलाओं के लिए एक मिसाल बन सकता है। खासकर उन महिलाओं के लिए जो अपने बीमार पति और परिवार की जिम्मेदारी उठा रही हैं।

यह भी पढ़े:
₹500 के नोट पर आया सरकार का बयान – जानिए चलन में रहेगा या नहीं – RBI 500 Note Update

Leave a Comment