Property Rights – आज के समय में प्रॉपर्टी को लेकर आए दिन नए नियम, कानून और कोर्ट के फैसले सामने आते रहते हैं। लेकिन हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट का एक ऐसा अहम फैसला आया है, जिसने यह साफ कर दिया है कि कुछ विशेष परिस्थितियों में पत्नी को भी पति की संपत्ति बेचने या गिरवी रखने का पूरा हक मिल सकता है। खासकर जब पति ऐसी स्थिति में हो जहां वह खुद कोई निर्णय लेने में असमर्थ हो, तो पत्नी को उसका गार्जियन (अभिभावक) मानते हुए उसे कानूनी रूप से यह अधिकार मिल सकता है।
क्या है पूरा मामला?
चेन्नई की एक महिला ने हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की, जिसमें उसने गुजारिश की कि उसे अपने पति का अभिभावक घोषित किया जाए क्योंकि उसका पति बीते पांच महीनों से कोमा में है। पति के इलाज और घर के खर्चों के लिए महिला को पैसों की जरूरत थी, लेकिन चूंकि संपत्ति पति के नाम थी और बैंक खाता भी उन्हीं के नाम से था, इसलिए वह कुछ कर पाने में असमर्थ थी।
पहले यह मामला सिंगल बेंच के पास गया जहां महिला की याचिका को खारिज कर दिया गया। कोर्ट ने कहा कि यह आवेदन विधिक रूप से पर्याप्त नहीं है। लेकिन महिला ने हार नहीं मानी और इस फैसले को डबल बेंच में चुनौती दी, जहां से उसे बड़ी राहत मिली।
हाईकोर्ट का क्या फैसला आया?
मद्रास हाईकोर्ट की डबल बेंच जिसमें जस्टिस जी. आर. स्वामिनाथन और पी. बी. बालाजी शामिल थे, ने माना कि कोमा में पड़े किसी व्यक्ति की देखभाल आसान नहीं होती। इसके लिए नियमित मेडिकल खर्च, पैरामेडिकल स्टाफ और अन्य संसाधनों की जरूरत होती है। कोर्ट ने यह भी माना कि जब महिला अकेले इन सब जिम्मेदारियों को उठा रही है तो उसे कोर्ट-कचहरी के चक्कर नहीं लगाने चाहिए।
कोर्ट ने फैसला दिया कि –
- महिला को उसके पति की अचल संपत्ति बेचने या गिरवी रखने की अनुमति दी जाती है।
- शर्त यह होगी कि संपत्ति बेचने के बाद 50 लाख रुपये की एक एफडी पति के नाम पर बनाई जाए।
- इस एफडी का ब्याज महिला निकाल सकती है ताकि घर का खर्च और देखभाल की लागत निकल सके।
- यह एफडी तब तक पति के नाम पर बनी रहेगी जब तक वे जीवित हैं।
ये फैसला क्यों है खास?
यह फैसला खास इसलिए है क्योंकि हमारे समाज में अधिकतर मामलों में पति ही संपत्ति का मालिक होता है और वही निर्णय लेने वाला होता है। लेकिन जब वह खुद निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है, तो परिवार संकट में पड़ सकता है। ऐसे में पत्नी को कानूनी गार्जियन बनाकर संपत्ति के अधिकार देना न केवल मानवीय दृष्टिकोण से सही है, बल्कि व्यावहारिक भी है।
इस फैसले से यह भी साफ होता है कि अगर आप किसी की देखभाल कर रहे हैं और वो व्यक्ति निर्णय लेने में असमर्थ है, तो आपको कोर्ट से अभिभावक बनाए जाने का अधिकार मिल सकता है। खासतौर पर तब, जब वह व्यक्ति लंबे समय से कोमा जैसी गंभीर अवस्था में है।
क्या अन्य मामलों में भी मिल सकता है यह अधिकार?
हां, लेकिन हर केस की स्थिति अलग होती है। कोमा, मानसिक अस्थिरता या ऐसी कोई बीमारी जिसमें व्यक्ति निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है, ऐसे मामलों में कोर्ट से अभिभावक बनाए जाने की मांग की जा सकती है। इसके लिए आपको अपने वकील की मदद लेनी चाहिए और सभी मेडिकल दस्तावेजों के साथ कोर्ट में आवेदन करना होता है।
महिलाएं जानें – कब मांग सकती हैं पति की संपत्ति पर अधिकार?
- जब पति मानसिक रूप से अक्षम हो।
- जब पति कोमा में हो या बेहोश हो और निर्णय नहीं ले सकता।
- जब मेडिकल खर्च या पारिवारिक जिम्मेदारियां उठानी हों।
- जब बच्चों की पढ़ाई, इलाज या घर खर्च के लिए पैसे की सख्त जरूरत हो।
क्या है कानून का नजरिया?
भारत में संपत्ति कानूनों के तहत किसी की संपत्ति को उसके बिना सहमति के बेचना गैरकानूनी माना जाता है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है और उसका हित सुरक्षित करना जरूरी हो, तो कोर्ट से इजाजत लेकर उसकी संपत्ति बेची जा सकती है। इसे “Guardianship under special circumstances” कहा जाता है।मद्रास हाईकोर्ट का यह फैसला आने वाले समय में कई ऐसे मामलों के लिए नजीर बन सकता है जहां परिवार का मुखिया बीमारी की हालत में हो और परिवार आर्थिक तंगी झेल रहा हो। कोर्ट का यह मानवीय फैसला बताता है कि न्यायिक व्यवस्था सिर्फ कागजी नियमों तक सीमित नहीं है, बल्कि वह असल जिंदगी की समस्याओं को भी समझती है और उसके लिए समाधान भी देती है।
इसलिए अगर आपके परिवार में भी ऐसी कोई गंभीर परिस्थिति हो, तो कोर्ट से मदद लेने में हिचकिचाएं नहीं। सही प्रक्रिया अपनाएं, दस्तावेज तैयार करें और वकील से सलाह लेकर अभिभावक बनने की याचिका दायर करें। इससे न सिर्फ मरीज की देखभाल बेहतर होगी, बल्कि पूरे परिवार को राहत मिल सकेगी।