Property New Rights – शादी के बाद एक लड़की जब बहू बनकर ससुराल आती है, तो उसके मन में कई सवाल होते हैं। खासकर एक सवाल जो अक्सर उठता है – क्या बहू का ससुराल की संपत्ति में कोई हक होता है? अगर ससुर के पास काफी संपत्ति है, तो क्या उस पर बहू भी दावा कर सकती है? ऐसे सवाल आम हैं, लेकिन इनके जवाब हर किसी को पता नहीं होते। आज हम इसी मुद्दे पर बात करेंगे – बिलकुल आसान और सीधी भाषा में।
सबसे पहले समझिए – संपत्ति कितनी तरह की होती है?
भारत के कानून के हिसाब से संपत्ति मुख्यतः दो प्रकार की होती है:
1. स्व अर्जित संपत्ति (Self-acquired property):
यह वो संपत्ति होती है जो किसी व्यक्ति ने अपनी मेहनत, नौकरी, बिजनेस या किसी और ज़रिए से खुद कमाकर खरीदी हो। मतलब – यह उस इंसान की निजी संपत्ति होती है, जिसे वो चाहे जिसे दे, चाहे ना दे।
2. पैतृक संपत्ति (Ancestral property):
यह वो संपत्ति होती है जो किसी को उसके पूर्वजों से मिली हो – जैसे दादा-दादी से पिता को, और पिता से बेटे को। इसमें हर उत्तराधिकारी का जन्म से ही हिस्सा बनता है।
बहू का ससुर की संपत्ति पर क्या हक है?
यह सवाल बहुत सी महिलाओं के मन में होता है, लेकिन इसका जवाब संपत्ति की प्रकृति पर निर्भर करता है।
अगर ससुर की संपत्ति स्व अर्जित है:
तो साफ बात है – बहू का उस पर कोई कानूनी अधिकार नहीं होता। ससुर को यह अधिकार है कि वो अपनी मेहनत की कमाई से खरीदी गई संपत्ति जिसे चाहे दे सकते हैं – अपने बेटे को, बेटी को, किसी ट्रस्ट को, या यहां तक कि किसी अजनबी को भी।
अगर संपत्ति पैतृक है:
तो इसमें बहू को सीधे हक नहीं मिलता, लेकिन उसके पति के हिस्से के जरिए अधिकार बन सकता है। यानी, अगर पति को अपने पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सा मिलता है और फिर पति की मृत्यु हो जाती है, तो बहू (एक विधवा के रूप में) उस हिस्से की कानूनी वारिस बन जाती है।
पति के रहते क्या बहू को कोई अधिकार है?
पति के जीवित रहते बहू को ससुर की संपत्ति में कोई कानूनी हिस्सा नहीं मिलता। हां, अगर पति को संपत्ति मिली है और वह उसे बहू के नाम करता है या कोई वसीयत (Will) बनाता है, तब बात अलग है। नहीं तो, कानूनी रूप से बहू का कोई हिस्सा नहीं बनता।
वसीयत का क्या रोल है?
कानून के अनुसार अगर ससुर ने वसीयत में यह लिखा है कि उनकी संपत्ति का कुछ हिस्सा बहू को मिलेगा, तो फिर बहू को कानूनी रूप से अधिकार मिल जाता है। लेकिन अगर कोई वसीयत नहीं बनी है, तो स्व अर्जित संपत्ति में बहू का कोई दावा नहीं बनता।
बहू को रहने का हक जरूर है
बहू को भले ही संपत्ति में मालिकाना हक न मिले, लेकिन रहने का अधिकार जरूर होता है। घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत अगर बहू को पति के घर से निकाला जाता है, तो वह कोर्ट में जाकर न्याय मांग सकती है। कोर्ट बहू को उस घर में रहने की अनुमति दे सकता है, भले ही वह घर ससुर के नाम हो।
लेकिन ध्यान रखें – यह सिर्फ “रहने का हक” है, न कि “मालिकाना हक”।
कब मिल सकता है बहू को संपत्ति में हिस्सा?
कुछ विशेष परिस्थितियों में बहू को ससुर की संपत्ति में हिस्सा मिल सकता है:
- पति की मृत्यु हो जाए और वह वसीयत न छोड़कर गया हो
- ससुराल वालों ने भी कोई वसीयत न बनाई हो
- पति को जो संपत्ति मिली थी, वह बहू और बच्चों के नाम हो जाए
- ससुर की वसीयत में बहू को नामित किया गया हो
बेटे और बहू – दोनों सिर्फ मेहमान
अगर घर ससुर की स्व अर्जित संपत्ति है, तो बेटा और बहू दोनों ही उस घर में तभी रह सकते हैं, जब ससुराल वाले अनुमति दें। माता-पिता अगर कह दें कि वे अब बेटे-बहू को अपने घर में नहीं रखना चाहते, तो उनका ये फैसला पूरी तरह कानूनी होता है। यानी स्व अर्जित संपत्ति पर माता-पिता की मर्जी ही अंतिम है।
बहू को कानून की जानकारी होनी चाहिए
बहुत जरूरी है कि हर बहू को अपने अधिकारों की जानकारी हो। और परिवार के बाकी सदस्यों को भी चाहिए कि वो अपनी संपत्ति से जुड़ी वसीयत समय पर बनवा लें ताकि भविष्य में किसी तरह का विवाद न हो।
कुल मिलाकर बात ये है कि बहू को ससुर की संपत्ति में कोई “अपने आप” हक नहीं मिलता। लेकिन अगर वसीयत हो, या पति के माध्यम से उत्तराधिकारी बन जाए, तब उसका कानूनी अधिकार बन सकता है। और सबसे अहम बात – बहू को घर में रहने का हक जरूर है, खासकर अगर पति के साथ उसका नाम जुड़ा हो।
कानून आपके साथ है, लेकिन जानकारी जरूरी है। सही वक्त पर सही कदम उठाएं, और किसी भी कानूनी दावे के लिए वकील की सलाह जरूर लें।