मान्यता रद्द होने की कगार पर ये स्कूल! जानिए सरकार ने क्यों लिए सख्त फैसले – Private School Action

By Prerna Gupta

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Private School Action – शिक्षा व्यवस्था को सुधारने और गरीब-वंचित तबके के बच्चों को उनका हक दिलाने के लिए सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है। राज्य के शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने हाल ही में साफ कहा है कि जो भी प्राइवेट स्कूल शिक्षा के अधिकार कानून यानी RTE का पालन नहीं कर रहे हैं, उन पर अब सीधी कार्रवाई की जाएगी। जरूरत पड़ने पर उनकी मान्यता भी रद्द की जा सकती है।

आजकल बहुत सारे निजी स्कूल केवल फीस लेने पर ध्यान देते हैं लेकिन जब बात गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ाने की आती है, तो वे या तो नियमों को नजरअंदाज करते हैं या फिर बहानेबाजी शुरू कर देते हैं। अब सरकार ने ऐसे स्कूलों की पहचान कर ली है और इनके खिलाफ बड़े स्तर पर कार्रवाई की तैयारी है।

क्या है शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE)?

शिक्षा का अधिकार अधिनियम, जिसे हम RTE कहते हैं, साल 2009 में लागू हुआ था। इस कानून के मुताबिक 6 से 14 साल के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देना हर स्कूल की जिम्मेदारी है। खास बात ये है कि हर निजी स्कूल को अपनी कुल सीटों में से 25% सीटें गरीब और वंचित वर्ग के बच्चों के लिए आरक्षित रखनी होती हैं। यानी इन बच्चों को बिना फीस पढ़ाना होगा और इस पर स्कूल को आपत्ति नहीं हो सकती।

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अब क्यों बढ़ी सख्ती?

हाल के समय में उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग को कई शिकायतें मिली हैं कि कुछ प्राइवेट स्कूल RTE के तहत बच्चों को दाखिला नहीं दे रहे हैं। कहीं बच्चों के प्रवेश से इनकार किया गया, तो कहीं दाखिले के बाद उन्हें सुविधाएं नहीं दी गईं। इन गंभीर शिकायतों को देखते हुए शिक्षा मंत्री ने सभी जिलों के मुख्य शिक्षा अधिकारियों को आदेश दिया है कि वे फौरन कार्रवाई शुरू करें।

क्या होंगे अब नए कदम?

  1. स्कूलों की निगरानी: सभी जिलों के शिक्षा अधिकारियों को निर्देश मिला है कि वे अपने इलाके के स्कूलों की जांच करें और RTE के तहत दी गई सीटों की रिपोर्ट बनाकर सरकार को सौंपें।
  2. अचानक निरीक्षण: अब स्कूलों का औचक निरीक्षण होगा। इसमें देखा जाएगा कि स्कूल में कितने शिक्षक हैं, बुनियादी सुविधाएं कैसी हैं, और क्या बच्चों को तय मानकों के अनुसार शिक्षा मिल रही है या नहीं।
  3. मान्यता पर संकट: अगर कोई स्कूल नियमों का उल्लंघन करता पाया गया तो उसे कारण बताओ नोटिस जारी किया जाएगा। फिर भी सुधार नहीं हुआ तो उसकी मान्यता रद्द की जा सकती है।
  4. शिकायत दर्ज कराने के लिए पोर्टल: बाल अधिकार आयोग की अध्यक्ष डॉ. गीता खन्ना ने सुझाव दिया है कि RTE से संबंधित शिकायतों के लिए एक अलग ऑनलाइन पोर्टल बनाया जाए, जहां अभिभावक या छात्र सीधे शिकायत दर्ज करा सकें।
  5. सुझाव पेटी अनिवार्य: अब सभी स्कूलों में शिकायत व सुझाव पेटी लगाना जरूरी कर दिया जाएगा ताकि कोई भी छात्र, अभिभावक या शिक्षक अपनी बात आसानी से रख सके।

बड़ी बैठक में बने अहम फैसले

इस पूरी मुहिम को लागू करने के लिए सरकार ने हाल ही में एक उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक की। इसमें शिक्षा महानिदेशक, बाल अधिकार आयोग के अधिकारी, मुख्य विकास अधिकारी और राज्य के तमाम जिलों के शिक्षा अधिकारी शामिल हुए। बैठक में यह स्पष्ट कर दिया गया कि RTE का उल्लंघन किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

बैठक में तय हुआ कि अब स्कूलों की जवाबदेही तय की जाएगी और हर महीने इस पूरे अभियान की रिपोर्ट तैयार करके मंत्री को सौंपी जाएगी। यह एक तरह से शिक्षा व्यवस्था की नियमित समीक्षा का हिस्सा बन जाएगा।

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क्यों है यह फैसला जरूरी?

हमारे देश में आज भी लाखों बच्चे ऐसे हैं जो संसाधनों की कमी के कारण शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। RTE कानून ऐसे बच्चों को स्कूलों में दाखिला दिलाने का माध्यम है, लेकिन जब स्कूल ही कानून का पालन नहीं करेंगे तो ये बच्चे कभी पढ़-लिख नहीं पाएंगे। सरकार की यह सख्ती उन बच्चों के भविष्य को बचाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

क्या आपको भी शिकायत करनी है?

अगर आप उत्तराखंड में रहते हैं और आपके बच्चे को किसी प्राइवेट स्कूल ने RTE के तहत दाखिला देने से इनकार किया है, या आप किसी गड़बड़ी के गवाह हैं, तो जल्द ही सरकार द्वारा लॉन्च किए जाने वाले पोर्टल पर शिकायत दर्ज करा सकते हैं। साथ ही, स्कूलों में लगाई जाने वाली सुझाव पेटी का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

सरकार का यह रुख दिखाता है कि अब शिक्षा के क्षेत्र में कोई भी लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। अगर स्कूल गरीब बच्चों को शिक्षा देने से पीछे हटते हैं, तो वे अपनी मान्यता भी खो सकते हैं। यह कदम न केवल शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाएगा, बल्कि समाज के उस तबके को भी सशक्त करेगा जिसे सही मायनों में इसकी जरूरत है।

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